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________________ चौथे दुःखमा-सुखमा काल के समाप्त होने में ७५ साल ३ माह' बाकी रह गये थे, २३वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के निर्वाण से २५० वर्ष बीत जाने पर कुण्डपुर में भ० महावीर का जन्म हुआ । तीन लोक का नाथ स्वर्ग छोड़ कर पृथ्वी पर आवे, फिर भला किसको आनन्द न होगा ? संसारी प्राणियों का तो कहना ही क्या है, नरक में भी एक क्षण के लिए सुख और शान्ति होगई । महाराजा सिद्धार्थ ने पुत्र-जन्म के उपलक्ष में मुंहमांगा इनाम बाँटा', बन्दीखाने के कैदी छुड़वा दिये', अनेक धार्मिक प्रभावशाली क्रियाएँ की गई । दस रोज तक बड़े उत्साह के साथ जन्मोत्सव मनाया गया, राजज्योतिषी ने शुभ लग्न निकाल कर जन्म कुण्डली बनाई", और बालक को बढ़ा भाग्यशाली बताया। इनके गर्भ से ही राजा तथा देश का अधिक. यश और वैभव बढ़ना auspicious moment towards the close of night. It Was MONDAY and the 13 th day of the moon in the month of Chaitra --Prof. Dr H. S. Bhatta charya: Lord Mahavira (J. M. Mandal( P. 7. १. श्री कामताप्रसाद : भगवान् महावीर पृ० ६७।। २. पं० अजुध्याप्रसाद गोयली : हमारा उत्थान और पतन, पृ० ३३ । ३-६. पं० कामताप्रसाद : भगवान् महावीर, पृ० ६७।। ७. जो जन्म कुण्डली ऊपर दिखाई है वह भगवान् महावीर की है: (i) महर्षि शिवव्रतलाल वर्मन् : गास्पल ऑफ वद्धमान, पृ० २७। (ii) श्री चौथमल जी : भगवान् महावीर का आदर्श जीवन, पृ० १६१ । (iii) श्री फल्टेन श्री महावीर-स्मृति ग्रन्थ, पृ० ८७ । ८. ज्योतिष के अनुसार जन्म कुन्डली के ग्रहों का फल देखियेः (i) महर्षि शिवव्रतलाल वर्मन : गास्पल ऑफ वर्द्धमान् पृ० २८-२६ । (ii) श्री महावीर-स्मृति ग्रन्थ (आगरा) पृ० ८७-८८ ।। २४६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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