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________________ जिन के अनुपम ज्ञान की प्रशंसा विरोधी प्रतिद्वन्दी नेता होने पर भी महात्मा बुद्ध ने की हो', जिनके चरणों में मस्तक झुका कर महाराजा श्रेणिक बिम्बसार अपने जीवन को सफल मानते हों और जिनके गुणों का कथन करने में स्वर्ग के देव भी असमथ हों और जिनके सम्बन्ध में बिद्वानों का मत हो:असितगिरिसमं स्यात्कन्जलं सिन्धुपात्र, सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमूर्वी । लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं, तदाप तव गुणानाम् वीर पारं न याति ।। -महावीर निर्वाण और दिवाली (ज्ञातपुत्र महावीर जैन संघ) पृ० १२ । समुद्र रूपी दवात में मेरु पर्वत जितनी रोशनाई डाल कर संसार के सारे वृक्षों की कलमों से पृथ्वी रूपी कागज पर शारदा के सदैव लिखते रहने पर भी भ० महावीर के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन नहीं हो सकता, तो मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के लिये तो उनकी जीवन कथा न केवल छोटा मुह बड़ी बात है बल्कि स्वर्ग के देव भी वीर के कुल गुण कर नहीं सकते बयां । उनके प्रत्येक गुण में हैं एक हजार आठ खूबियाँ ॥ कह नहीं सकता कदाचित मैं उन के जीवन की कथा । चाहे एक एक वाल तन का बन जाये मेरी मौ सौ जबां ॥ यही कारण है कि सारी पुस्तक में हमारी गांठ का एक शब्द भी नहीं है। संसार के जैन अजैन विद्वानों की रचनाओं से श्री वर्द्धमान महावीर और उनकी शिक्षा के सम्बन्ध में जो सामग्री हमें प्राप्र हो सकी वह इस पुस्तक के रूप में आपकी भेंट की जा रही है । इस के तीन भाग हैं। पहले में उर्दू और अगरेजी, भी है, क्योंकि भ० वीर और उनकी शिक्षा के सम्बन्ध में हमें जिस भाषा में भी मामिग्री प्राप्त हुई हम ने उस को उसी रूप में Ji, Several other scholars have also gone through it and they appreciate very much your labour and your keepness but the concensus of opinion is that the present work can not serve the purpose of a history, but can be u eful only for general reference." १ This book's P. 331-71, [२७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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