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वैद्य-सार
लेवे। फिर इस रस की एक एक रत्ती के बराबर भंगरा के स्वरस में गोली बनावे । यह महाज्वरांकुश रस अनुपान भेद से सब प्रकार के ज्वरों को तथा एकाहिक, छ्याहिक ज्याहिक और चतुरााहक त्रिदोषज आदि सब ज्वर को नाश करता है।
४०-उदररोगे शंखद्रावः स्फाटिक्यं नवसारकं च लवणं तुल्यं च भागत्रयम् । सार्ध भूलबणं हितं द्रवमिहैतद् भैरवीयंत्रके ॥१॥ मापीतमिदं भगंदरमजीर्ण मुदरादिशूलादिकम् ।
शंखद्राववराभिधानमुदरे भूतान् रोगान् हरेत् ॥२॥ टीका-फिटकरी, नौसादर, सेंधा नमक ये बराबर बराबर लेकर ॥ भाग कलमी शोरा सम्मिश्रण कर भैरवस्त्र के द्वारा शंखद्राव निकाले। इसके पीने से भगंदर, अजीर्ण, उदरशूल प्रादि अनेक उदर रोगों का नाश होता है।
४१-विबंधे जयपालयोगः जयपालस्य च बीजानि पिप्पली च हरीतकी । तत्सम शुल्वचूर्ण तु बज्रीक्षीरेण भावतम् ॥१॥ मरिचप्रमाणगुटिकां तांबूलेन च मर्दयेत् ।
उष्णोदकेन बमनं शीतलेन विरेचनम् ॥२॥ टोका-शुद्ध जमालगोटा के बीज, पीपल, बड़ी हर्र का छिलका, बड़ी हर्र के बराबर ताम्रभस्म इन सबको थूहर के दूध की भावना देवे तथा पान के रस के साथ काली मिर्च के परावर गोली बांध लेवे। इसको गर्म पानी से सेवन करने से बमन होता है तथा शीतल जल के साथ खाने से विरेचन होता है।
४२--शीतज्वरे शीतकेशरीरसः हिंगुलं टंकणं गंधं सूतं पुनस्तु गंधक। विषं तुत्थं कांतशिलाबोलतालनवसागरं ॥१॥ कारवल्लीरसे पिष्ट्वा मर्दयेद्याममात्रकम् । चणमानवीं कुर्यात् गुड़मिश्रंतु सेधयेत् ॥२॥ चातुर्थिकज्वरं हंति पथ्यं दध्योदनं हितम्। सितेमकेशरी नाम पू यपादेन निर्मितः ॥३॥
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