SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैद्य-सार ३४--मन्दानौ बड़वाग्मिरस: शुद्धं सूतं ताम्रभस्म तालबोलं समं समं । अर्कतीरेण संमी दिनमेकं द्विगुंजकम् ॥१॥ बड़वाग्निरसं खादेन्मधुना स्थौल्यशांतये। पूज्यपादप्रयुक्तोऽयं खलु मंदाग्निनाशकः ॥२॥ टीका-शुद्ध पारा, ताम्रभस्म, तवकिया हरताल भस्म, शुद्ध बोल बराबर बराबर लेकर इन सबों को अकौवा के दूध में दिन भर घोंटे तथा दो दो रत्ती की गोली बनावे। इसी का नाम बड़वाग्नि रस है-इसको शहद के साथ सेवन करने से स्थूलता दूर होती है। यह पूज्यपाद स्वामी का प्रयोग मंदाग्नि का नाश करनेवाला है। ३५---रक्तदोषे तालकेश्वररसः तालकं मृततानं च समं खल्वे विमर्वयेत् । वंध्याकर्कोटकीकंदस्वरसेन दिनत्रयम् ॥१॥ द्विगुंजं मधुना दद्यात् पश्चात् क्षौद्रोदकं पिबेत् । रक्तदोषप्रशांत्यर्थं पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ टीका-तकिया हरताल का भस्म तथा ताम्रभस्म ये दोनों खरल में बांझककोड़ा के कंद के स्वरस में तीन दिन तक घोंट कर दो दो रत्ती की गोली बांधे। उस गोली को सुबह शाम मधु के साथ सेवन करे और ऊपर से मधु का पानी पिये। यह रक्तदोष की शांति के लिये पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। ३६--बहुमूत्रे तारकेश्वररसः मृतं तारं मृतं वंगं मृतं कांताम्रक समम् । मर्दयेन्मधुना दिवसं रसोऽयं तारकेश्वरः ॥१॥ माषैकं लेहयेत् क्षौद्रः बहुमूलनिवारणः । मूत्रदोषप्रशांत्यर्थं पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ टीका-चांदी का भस्म, वंग का भस्म, कांत लौह भस्म तथा अभ्रक भस्म ये चारो बराबर बराबर लेकर मधु के साथ एक दिन भर बरावर घोंटे और एक माशे की मात्रा से प्रातःकाल मधु के साथ सेवन करे। इसका बहुमूत्र रोग की शांति के लिये पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy