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________________ २२. वैद्य सार सर्वस्य गोलकं कृत्वा ताम्रपात्रे विनिक्षिपेत् । आच्छाद्यैरण्डपत्रेण यामार्द्धे चोष्णतां नयेत् ॥२॥ धान्यराशौ विनिक्षिप्य द्विदिनं चूर्णयेत्ततः । त्रिकटुत्रिफला चैलाजातीफललवंगकम् ॥३॥ चूर्णमैषां समं पूर्वरसस्यैतन्मधूयुतम् । द्विनिष्कं भक्षयेन्नित्यं स्वयमग्निरसोह्ययं ॥४॥ क्षयका सत्तयश्वास हिक्कारोगस्य नाशकः । ज्वरादितरुणे प्रोक्तान् चानुपानान् प्रयोजयेत् ॥५॥ सर्वकासेषु मतिमान् कासोकैरनुपानकैः । क्षयादिनाशको योगः पूज्यपादेन भाषितः ॥ ६ ॥ धान्य की राशि में दो दिन टोका - शुद्ध पारा तथा दूना गंधक लेकर कज्जली बनावे और दोनों के बराबर तीक्ष्ण लौहभस्म लेकर घीकुआरि के स्वरस में गोली बनाकर ताम्बे के पात्र में रख कर बंद करके डेढ़ घंटे तक आँच देकर गर्म करे और फिर उसी संपुट को तक रख देवे, पश्चात् निकाल कर सबकेा पीसकर चूर्ण बनाले त्रिफला, छोटी इलायची, जायफल, लवंग इनका चूर्ण पहले के घोंट कर तैयार करले । यह स्वयं अग्निरस तैयार हो गया समझो। साथ सेवन करना चाहिये तथा ज्वर इत्यादि में जो अनुपान कह श्वास में जो अनुपान कह चुके हैं उन्हीं अनुपानों से इनका भी देना चाहिये। यह क्षय यादि को नाश करनेवाला पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम योग है । तथा सोंठ मिरच, पीपल, रस के बराबर ले एवं इस चूर्ण को मधु के चुके हैं, खाँसी और ३० वाजीकरणे रतिविलासरसः हरजभुजगकांताश्चाभ्रकं च त्रिभागं कनकविजययष्टी शाल्मली नागवल्ली । सितमधुघृतयुक्तं सेवितं बल्लयुग्मम् । मदयति बहुकांतं पुष्पधन्वा बलायुः ||१|| टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध शीसा, कांतलौह भस्म ये तीनों बराबर बराबर लेवे तथा अभ्रक भस्म, तीसरा भाग ले और सबको घोंट कर तैयार कर लेवे, फिर शुद्ध धतूरा के बीज, बिजया की पती, मुलहठी, सेमल का मूसला एवं पान इनके साथ मिश्री तथा शहद के साथ साथ रती प्रमाण सेवन करने से बहुत स्त्री वाले पुरुष को कामदेव तथा बल और आयु मदत कर देते हैं अर्थात् वह क्षीण-शक्ति नहीं होता । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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