SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७ ) आपणा साधुओए जैनेतर प्रजाने जाहेर उपदेश आपवानो रिवाज अनुकुळता प्रमाणे रत्नाधिकनी आज्ञानुसार राखवा. तेमज हरकोई जाहेरव्याख्यान पंछी ते जैन या जैनेतर गमे तेनुं होय त्यां द्रव्य क्षेत्र काळ भावादिनी अनुकूळता जोई रत्नाधिकनी आज्ञानुसार जवाने हरकत नथी. ठराव चौदमो. पोताना ताबाम चोमासुं करनार या पोतानी निश्राए रहेनार साधुनो पत्र आवे तो ते खोली वांचवानो अने योग्य लागे तोज आपवानो अगर वंचाववानो अधिकार उपर बताव्या प्रमाणेना मंडळीना वडा साधु होय तेमने छे, वडा सिवाय बीजाओए कागळपत्रनो व्यवहार परभारो करवानो नथी. कदापि पोताने कोई जरुरी समाचार मंगवाना होय तो वडील साधुनी मारफत मंगाववा. ठराव पंदरमो. जैनेतर कोईपण सारो माणस जीवदया वगेरे धार्मिक कार्योनो उद्यम करतो होय तेने पण आपणा साधुए यथाशक्ति मदद आपत्रानो प्रयत्न करवो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035293
Book TitleVadodarama Shrimad Vijayanandsurishwarji Maharajna Sanghadana Muni Sammelane Karela Tharavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Yuvak Sangh
PublisherJain Yuvak Sangh
Publication Year1930
Total Pages24
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy