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मैं पण्डित कृष्णदेव शास्त्री ( विहारी ) तथा वैद्य बालकदासजी संत देसुरीका भी आभारी हूं जिन्होंने कि मुझे इस कार्य में काफी मदद देकर इस कार्य को सम्पूर्ण कराया ।
अन्त में मैं अपनी त्रुटियों के लिये क्षमा-याचना करते हुए सर्व पाठकों से निवेदन करता हूं कि एक बार अवश्य ही इस तुच्छ सेवक कृत " तत्त्ववेत्ता " को पढकर अपने जीवन के काले मन को धोने के लिये इसका साबूनरूप में प्रयोग कर जीवन शुद्ध बनावें । जय भारत ! ! !
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शिवगंज ११-३-१९५४
आपका
पुखराज शर्मा
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