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________________ लीम्बडी के लेख की प्रतिलिपि मुनिराज श्री जवेरसागरजी सं. १९४७ की सालमांसाधु १० तथा साध्वी ७ सहित चौमासुं रह्या । जेठ वद ३ना दिने पंन्यासजी श्री हितविजयजी तथा अमदावादना सेठ मनसुखभाई, प्रेमाभाई, हरीसिंहभाई तथा लीम्बडीना सर्वे संघ मलीने बडी दीक्षा आनन्दसागरजी (१) तथा कमलविजय ने (२) तथा आणंदविजयजी (३) ने गणी पदवी तथा पंन्यास पदवी आपीने अठाई महोत्सव पर्व संघ तथा मणीभाई वगेरे वगेरे बडे आडम्बर आनंदपूर्वक किया । त्यारे आ सिंगासन कराव्यु छे । ए सर्वे गणीजी मूलचंदजी महाराज का उपगार...............(३) मा श्री जवेरसागरजी प्रयत्न किया । परम पवित्र जैनधर्म पामी शुद्ध श्रद्धा लावी श्री देवगुरुनी भाक्त करवी जेथी कल्याण थाशे । श्री जिनेन्द्राय नमः । गुरुभ्यो नमः । नोट-(१) जो आजकल आगमोद्धारक सागरानन्दसूरिजी के नाम से प्रसिद्ध है। (२) जो आजकल श्री कमलमूरिजी के नामसे प्रसिद्ध है। (३) जो आजकल आणंदविजयजी कमलसूरिजी के काकागुरु थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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