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विशेष विवरण
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मेडता तो आप की जन्मभूमि थी । अपनी जन्मभूमि और जननी किसे प्यारी नहीं लगती । गाँव के लोग तथा आप के गृहस्थ कुटुम्बी भी दर्शन के लिये दोड पडे । प्रेम उमडने लगा | संघ के आग्रहवश १९५५ का चौमासा आपने यहाँ पर ही ठा लिया ।
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संवत् १९५६ से लगाकर १९६४ तक आपने क्रमशः पाली, बाली, सांडेराव, पींडवारा, शिवगंज, वडगाम, जालोर, बीकानेर और सादडी में किये। बाद घाणेराव होते हुए उदयपुर पधारें । १९६५ का चातुर्मास उदयपुर में कर के आप पुनः घाणेराव आदि ग्रामों में होते हुए गुडाबालोताका पधारे ।
संवत् १९६६ - से ६८ तक आपने लगातार तीन चातुमस इसी गाँव में करने पडे । कारण कि उधर तीन थुई के राजेन्द्रसूरिजी के भक्तों का जोर था, तब इधर चार थुईवालों ने आपको पकड लिया । इस चातुर्मास में आपने “ प्रतिक्रमणविधिप्रकाश " नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिख प्राकारे प्रकाशित भी करवाया। वहां से आपने विहार कर पुनः घाणेराव की ओर प्रस्थान किया ।
एक वार बाली में चातुर्मास था, उस समय राजेन्द्रसूरिजी से भेट हुई । खुब प्रेममय शास्त्रार्थ हुआ । यहां से घाणेराव
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