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________________ : ३८ : तत्त्ववेत्ता देकर विनयविजय नाम रखा। जो कि पीछे से पंन्यास विनयविजयजी तपस्त्री के नाम से प्रसिद्ध हुए । घाणेराव श्री संघ का विशेष प्रेमभाव देखकर व पंच. तीर्थी जैसी पवित्र भूमि को देख आपने घाणेराव में ही ज्ञानमंदिर की स्थापना करने का निश्चय किया । अतः शुभ संवत् १९५१ में आपने यहाँ ज्ञानमंदिर की स्थापना कर दी । अमदावाद तथा उदयपुर स्थित सभी ज्ञान के ग्रन्थों को आपने यही मंगवा लिया। प्रथम भी यहां दादागुरु का ज्ञानसंग्रह था ही। इस ज्ञानमंदिर में सेंकडो वर्षों के प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह किया गया, जो आज भी विद्यमान है। इस के उपरान्त इस ज्ञानमंदिर में तरह तरह के विषयों के ग्रन्थ है, जैसे-धार्मिक, ज्योतिष, ऐतिहासिक और सामाजिक आदि। उपरोक्त ज्ञानमंदिर की व्यवस्था वर्तमान समय में इनके सुयोग्य विद्वान् शिष्यरत्न मेवाडकेसरी श्री नाकोडा. तीर्थोद्धारक आचार्यदेव श्रीमद्विजयहिमाचलसूरीश्वरजी महाराज के अधीनस्थ है । आजकल यह ज्ञानमंदिर 'श्री हित. सत्क ज्ञानमंदिर' के नाम से सुविख्यात है। आपने इस की व्यवस्था में काफी दिलचस्पी लेकर कई ग्रन्थों का संग्रह बढ़ाया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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