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समर्पण
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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदं । मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ||
ह" तत्त्ववेत्ता ” नामक पुस्तिका मैं उन सद्गुरुदेव परमपूज्य प्रातःस्मरणीय पतितपावन तरणतारणहार मेवाडकेसरी श्री नाकोडा तीर्थोद्धारक श्रीमद्विजयहिमाचल
सूरीश्वरजी महाराज के चरणों में सादर समर्पण करता हूँ । जिन्हों ने कि मुझे अपने जीवन का
सदुपयोग करने का
सच्चा ज्ञान देकर कृतार्थ किया ।
आशा है कि गुरुदेव मेरी इस तुच्छ भेट को
स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित करेगें ।
शिवगंज
११-३-५४
आपका चरणकिंकर
पुखराज शर्मा
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