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________________ :३६ : तत्त्ववेत्ता लिम्बडी का चातुर्मास सानन्द समाप्त होने पर आप अपनी शिष्यमंडली के साथ विहार करते करते पुनः श्री सिद्धक्षेत्र-पालीताणा पहुंचे । यहाँ दादाजी की यात्रा करते हुए वैशाख की अक्षयतृतीया तक बिराजे । बाद में आपने पुनः प्रयाण शुरू किया। संवत् १९४८ का चातुर्मास पालीताना से मारवाड लौटते समय अमदावाद में ही किया। इस चातुर्मास में आपके हृदयस्पर्शी सचोट देशना से प्रभावित होकर सेठ दोलामाई जवेरी के सुपुत्र वाडीलालभाईने श्री केसरियाजी तार्थ का श्रीसंघ आपकी अध्यक्षता में निकाला। जिसमें काफी साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविकाओंने भाग लिया। यह संघ १९४८ के चैत्र कृष्णाष्टमी के पहले ही पहुंच गया। दादा की यात्रा सानन्द की । अष्टमी के दिन यहाँ पर एक सार्वजनिक मेला भी लगता है जिसमें जैनों के अलावा भीलमेणे ग्रासिये आदि जंगली जाति भी सम्मीलित हो प्रभुपूजा का लाभ लेते है । संघ भी मेले के सुप्रसंग तक ठहर गया। संघ में आये हुए सभी यात्रीगण पंन्यासजी महाराज के साथ साथ उदयपुर आये । यात्रियोंने उदयपुर के दर्शनीय स्थानों का अवलोकन कर अपने अपने स्थान को प्रस्थान कर दिया । पंन्यासजी महाराज को तो उदयपुर के श्रीसंघने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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