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________________ विशेष विवरण : २३ : को दीक्षा दी । और उसका नाम धीरविजय रखा । अब आप पांच ठाणा हो गये । यहाँ कुछ समय ठहरने के बाद आपने पुनः भावनगर की तरफ विहार किया । भावनगर की तरफ प्रायः एक चातुर्मास पूर्ण करके आप गिरनार ( जूनागढ ) की तरफ पधारें । | उस समय जूनागढ मूसलमानों के आधीन था, अतः यहाँ विधर्म की बोलबाला थी, हिंसा का जोर था । यहाँ ऐसे समय में साधुओं का जाना एक समस्यारूप था । ऐसे विकट समय में कोई ही साधु हिम्मत कर पहुँच पाता । आप तो निर्भीक होकर अपने शिष्यमण्डल को साथ ले वहाँ चले गये । लोगोंने प्रथम तो उन्हें समझाया, पर वे अडिग रहे । आपके ऐसे धर्मप्रेम को देख लोग आश्चर्य करते थे। इस अवसर का लाभ उठाकर कई श्रावक भी आपके साथ गिरनार की यात्रा निमित्त साथ हो गये । जूनागढ जाकर आपने सर्व प्रथम श्री गिरनार नेमिनाथदादा की यात्रा प्रारम्भ की। गिरनार जैसे र्तार्थाधिराज की तलेटी पर आप कुछ दिन बिराजमान रहें। रोज यात्रा करते हुए प्रत्येक देवमन्दिर को आपने बडी संलग्नता से देखा । मंदिरों की व्यवस्था की जाँच की और अपने ध्यान में आई हुई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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