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तत्ववेत्ता
भी बढ़ाया। साधु होने के पश्चात् आप थोडे ही समय में ज्ञान ध्यान क्रिया-काण्ड आदि में काफि उन्नत होगये । साथही साथ आपने गुरुभक्ति का अटल और कल्याणकारी मार्ग भी श्रद्धापूर्वक अपनाया। जिस से अल्प कालमें ही ऐसी भक्ति देख लोग दाँतो तले अंगूली दबाने लगे। __ कुछ समय पश्चात पंन्यासजी श्री चन्द्रविजयजी अपने सुयोग्य शिष्य हितविजयजी के साथ विहारी बनें । गाँव गाँव घूमते ग्रामिण जनता को धर्मदेशना देते प्रभुभक्ति का पाठ पढाते पढाते आप अमदावाद पहुंच गये। अमदावाद की जनताने आपका बड़ा स्वागत किया। साथ ही आपको अमदावाद के सुप्रसिद्ध वीरविजयजी के उपाश्रय में ठहराया गया। यहाँ भी नित्य धर्म-देशना प्रारम्भ हुई। व्याख्यान में हजारों की भीड होने लगी।
आगम अध्ययन
बालमुनि गुरुभक्त श्री हितविजयजी को क्रिया-काण्ड में तथा गुरुभक्ति में लीन देख उनकी प्रशंसा होने लगी। उनके विद्याभ्यास की रुचि को देख श्री संघने पूज्य पंन्यासजी महाराज से प्रार्थना की कि आप हितविजयजी को धर्मकार्य में पारंगत के साथ आगम का अध्ययन
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