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[ ६ ] आतां प्रवेशीं सकारु, बाह्य नीर्गमि हकारु, तेचि सृष्टि संहारु, पृथग्बीजें ॥ १५ ॥
अवरोहिं विरोहिं म्हणिपति, चंचळें निश्वळें दिसति, संततें वर्तति, मन व्योमिं ॥ १६ ॥
हें गुरुमुखे पाविजे, छंद रुषि देवत जाणिजे, या परि किजे, मंत्र सिध्दु ॥ १७ ॥
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एवं पद बोलिलें तें संकेतें कथिलें तव शिष्ये पुसिलें पिंडु कैसा ॥ १८ ॥
पिंड.
आतां पिंडव्याख्यान करीन, संकेतें सांघैन, उन्मेषें बोलैन, बालबोधें ॥ १९ ॥
पिंडु म्हणिपे शक्ति, कुंडलिणि विख्याति, देह गोळकोत्पत्ति, जेथौनियां ॥ २०॥
जे भुजंगळणे सूतले, आधारिं निक्षेपिलि, योगियां जालि, मुक्तिवरदा ॥ २१ ॥
जैसि विद्यु तेजें झळकति, कां जळिं मच्छक तळपति, तैसि आधारि मिरवति, तेज:पुंज ॥ २२ ॥
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