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________________ ( ७९ ) गमें लगाकर स्नान कैसे किया जा सकता है ? मालूम होता है सुगंधके लोभी भ्रमरोंसे चुम्बित, एवं उत्तम, यह थोड़ा तेल मेरी बुद्धिकी परीक्षाके लिये कुमारी नंदश्रीने भेजा है । तथा ऐसा क्षण एक भले प्रकार विचारकर गुरुओंके भी गुरु कुमारने अपने पांव के अंगूठेसे जमीनमें एक उत्तम गढ़ा खोदा । और मुंह तक उसको जलसे भरकर दीर्घ नख धारणकरनेवाली सखी निपुणवतीसे कहा कि हे उन्नतस्तनी सुभगे ! तू इस जलके भरे हुवे गढ़े नखमें भरे हुवे तेलको डाल दे। कुमार श्रेणिककी इसप्रकार आज्ञा पाते ही अतिम्नेहकी दृष्टिसे कुमारकी ओर देखकर और मन ही मनमें अति प्रसन्न होकर निपुणवतीने जलसे भरेहुवे उस गढ़ेमें तेल छोड़ दिया । और अनेक प्रकारकी कलाओंमें प्रवीण वह चुप चाप अपने घरकी ओर चलदी ।निपुणवतीको इसप्रकार जाते हुवे देखकर कुमारने पूछ कि हे अवले ! सेठि इन्द्रदत्तका घर कहां और किस जगह पर है ? किंतु कुमारके इसप्रकारके उत्तम प्रश्नको सुनकर भी निपुणवतीने कुछ भी जवाब नहीं दिया और विनययुक्त वह निपुणवती कानमें स्थित तालवृक्ष के पत्तेका भूषण दिखाकर चुपचाप चलीगई। ... कुमारके चातुर्यके देखनेसे प्रफुल्लित कमलोंके समान नेत्रोंसे शोभित सखी निपुणमतीने शीघ्र ही अत्यंत मनोहर सेठि इन्द्रदत्तक घरमें प्रवेश किया और कुमारी नंदांके पास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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