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________________ पुत्रीके इसप्रकार बचन सुनकर सेठि इन्द्रदत्तने कहा कि हे पुत्रि यदि तेरी लालसा उसके विषयमें कुछ जानने की है तो मैं उस मनुष्यके सब वृत्तांतको कहता हूं तू ध्यान पूर्वक सुन--मैं लौटकर घर आरहाथा वीचमार्गमें नंदिग्रामके समीप मेरी उससे भेंट हुई उसीसमयसे उसने मुझे मामा वनालिया और मार्गमे भी मामा कहकरही मुझे पुकारा सो यह वता कि कौंन ? और कहां का रहने वाला तो वह ? और मैं कहांके रहने वाला ? फिर उसने मुझे मामा कहकर क्यों पुकारा ? । दूसरे कुछ चलकर फिर उसने कहा कि हम दोनों थकगये हैं इसलिये चलो अब जिह्वारूपी रथपर सवार होकर गमन करे हे पुत्रि यह बात बिलकुल उसने मिथ्या कही थी क्योंकि जिहारथ संसारमें कोई है यह बात आजतक न सुनी न देखी । पुनः कुछ चलकर एक नदी पड़ी उसमें इसने जूते पहिन कर प्रवेश किया। तथा अत्यंत शीतल वृक्षं की छायाके नीचे यह छत्री तानकर बैठा । तथा आगे चलकर एक अनेकप्रकारके मनोहर घरोंसे शोभित, मनुष्य एवं हाथी घोड़ा आदि पशुओंसे व्याप्त, एक नगर पड़ा उस नगरको देख कर इसने मुझसे पूछा कि हे मातुल यह नगर उजड़ा हुवा है कि बसा हुवा ? हे पुत्रि यह प्रश्न भी उसका मनको आनंद देनेवाला नहीं होसकता। आगे चलकर मार्गमें कोई एक मनुष्य किसी स्त्री को माररहा था उस स्त्री को देखकर फिर उसने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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