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________________ ( ५७ ) "हे श्रष्ठिन ( मातुल ) चलते चलते इस मार्गमें मैं और आप थकगये हैं इसलिये चलिये जिहारूपी रथपर चढ़कर चल। कुमारकी इस आकस्मिक बातको सुनकर अचंभे में पड़कर सेठि इंद्रदत्तने विचारा कि संसारमें कोई जिहारथ है ? यहबात न तो हमने आजतक सुनी और न साक्षात् जिहारूपी रथ ही देखा मालूम होता है यह कुमार कोई पागल मनुष्य है ऐसाः थोड़ी देर तक विचारकर सेठि इन्द्रदत्त चुप होगये उन्होंने कुमार श्रेणिकसे बात चीत करना भी बंद करदिया एवं दोनों चुपचापही आगेको चलने लगे। थोड़ी दूर आगे जाकर, अपने निर्मल जलसे पथिकों के मन तृप्त करनेवाली, अत्यंत निर्मल जलसे भरी हुई एक उत्तम नदी उन दोनोने देखी, नदीको देखते ही कुमार श्रेणिक ने तो अपने जूते पहिनकर नदीमें प्रवेश किया । और सेठि इन्द्रदत्तने पैरोसे दोनों जूतोंको पहिले उतारकर हाथ में लेलिया वाद वे नदीमें घुसे । मगध देशके कुमार श्रेणिकको जूते पहिनकर जब उन्होंने नदीमें प्रवेश करते हुवे देखा तो सेठि इन्द्रदत्त और भी अचंभा करनेलगे और उनको इसबात का पक्का निश्चय होगया कि कुमार श्रेणिक ज़रूर कोई पागल पुरुष है । तथा कुमार श्रेणिकके कामसे उन्होने अपने मनमें यह विचार किया कि अन्यबुद्धिमान पुरुष तो यह काम करते है कि जलमें जूता उतारकर घुसते हैं किंतु कुमार श्रेणिकने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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