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________________ mmmmmmmmmwwwwwwwwwwwww हे कुमार किसीसमय जब संसारमें यह प्रश्न उठा था कि धर्म क्या है ? उससमय समस्त विज्ञानके पारगामी महादेव भगवान बुद्धने यह वचन कहा था कि हे चतुराय, जो धर्म वास्तविकरीतिसे सच्चे आत्माके स्वरूपको वतलाने वाला है, और समस्त पदार्थोके क्षणिकत्वको समझानेवाला है वही धर्म वास्तविक धर्म है। एवं वही सेवन करने योग्य है उससे भिन्न कोई भी धर्म सेवने योग्य नहीं। हे राजकुमार विज्ञान वेदना संस्कार रूप नाम ये पांच प्रकारकी संज्ञायें ही तीनों लोकमें दुःख स्वरूप हैं पांचप्रकारके विज्ञान आदिक मार्गसमुदाय और मोक्ष ये तत्त्व हैं अष्टांग मोक्षकी प्राप्ति केलिये इन्ही तत्त्वोंको समझना चाहिये । यह समस्तलोक क्षणभंगुर नाशमान है, कोई पदार्थ स्थिर नहीं । चित्त में जो पदार्थ सदाकाल रहनेवाला नित्य मालूम पड़ता है वह स्वप्नके समान भ्रम स्वरूप है। तथा जो ज्ञान समस्तप्रकार की कल्पनाओंसे रहित निर्धात अर्थात् भ्रम भिन्न और निर्विकल्पक हो, वही प्रमाण है किंतु सविकल्पक ज्ञान प्रमाण नहीं है वह मृगतृष्णाके समान भ्रम जनक ही है । जिन तत्त्वोंका वर्णन बौद्ध धर्ममें किया है वे ही वास्तविक तत्त्व हैं। इसलिये यदि तुम अपने पिताके राज्यकी प्राप्तिके लिये उत्सुक हो--मगध देशके राजा बनना चाहते हो तो आप समस्त इष्ट पदार्थो का सिद्ध करनेवाला बौद्धधर्म शीघ्रही ग्रहण करें। हे कुमार! यदि आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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