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________________ ( ५३ ) श्रेष्ठिन आप यहां न वैठिये मेरे साथ आइये यहांपर कोई नदिग्रामका स्वामी ब्राह्मण निश्चयसे रहता है । हमदोनों भोजनकी प्राप्तिकेलिये भ्रमण कररहे हैं आइये उसके पास चल वह हमै अवश्य भोजनादि देगा। ऐसा कहकर कुमार श्रेणिक और सेठि इन्द्रदत्त दोनों उसन्ब्राह्मणके पासगये और उससे कहा कि हे विप्र नंदिनाथ तू महाराज उपश्रेणिकके सन्मानका पात्र राज्यसेवाके योग्य है और तू राज्यकार्यकेलिये महाराज द्वारा दिये हुवे मालका मालिक है इसलिये हमदोनोंको पीनेकेलिये कुछ जल और भोजनकोलिये कुछ धान्यदे क्योंकि राज्य के कार्यमें चतुर हम दोनों राजदूत हैं और भ्रमण करते २ यहांपर आपहुंचे हैं । कुमार श्रेणिकके इसप्रकार वचन सुनकर क्रोध से नेत्रों को लाल करता हुवा एवं सदा परके ठगनेमें तत्पर उस ब्राह्मणने क्रोधसे उत्तर दिया । कहांके राजसेवक ? कोंन ? किसकारण से कहांसे यहां आगये ? मैं तुम्हें पीनेकेलिये पानीतक न दूंगा भोजनादिककी तो वातही क्या है जाओ २ शाघ्रही तुम मेरे घर से चले जाओ जरा भी तुम यहांपर मत ठहरो यदि तुम राजसेवक भी हो तोभी मुझे कोई परवा नहीं । ब्राह्मणके इसप्रकार मूर्खता भेरे वचन सुनकर कोपसे जिनका गात्र कपरहा है कुमार श्रेणिकने कहा- अरे दयाहीन भिक्षुक हम कौन हैं ? तुझे इससमय कुछभी मालूम नही तुझे पीछे मालूम होगा । तेरे ऐसे दया रहित वचनों पर मैं पीछे विचार करूंगा जो कुछ तुझे उससमय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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