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________________ चाहिये । हे कुमार ! परदेशमें कुछदिन रहकर फिर तुम इसी देशमें आजाना पीछे राज्य आपको जरूर ही मिलेगा क्योंकि राज्य आपका ही है। ____ मंत्री मतिसागरके ऐसे कपटभरे वचन सुनकर, राजाका क्रोध परिणाममें दुःखदेनेवाला है इसवातको जानकर, और अपनी माता आदिको भी न पूछकर, अत्यंतदुःखित हो कुमार श्रेणिक राजग्रहनगरसे निकल पड़े। तथा महाराज उपश्रेणिक द्वारा भेजेहुवे रक्षाके बहानेसे गूढ़वेष धारणकरने वाले पांच हजार जासूस योधाओंके साथ साथ एकदम नगरसे बाहिर होगये । कुमारकी माता महाराणी इन्द्राणीके कानतक यहवात पहुंची कि कुमार श्रेणिकको देशनिकाला हुवा है सुनते ही वह इसप्रकार भयंकर रुदन करने लगी-हा पुत्र ! हा महाभाग ! हे कमलके समान नेत्रोंको धारणकरनेवाले! हा कामदेवके समान ! हा अत्यंत पुण्यात्मा ! हा अत्यंतशुभलक्षणोंको धारणकरनेवाले ! हा गजेन्द्रकी सूड़के समान लम्बे २ हाथाके धारक ।हा कोकिलके समान प्यारी वोलकि वोलनेवाले ! हा कमलके समान उत्तम मुखके धारक ! हा उत्तम एवं ऊंचे ललाटसे शोभित ! हा कामदेवके समान मनोहर शरीरके धारक ! हा कामदेवके समान विलासी । हा सुंदर ! हा शुभाकर ! हा नेत्रप्रिय ! हा संतोषके देनेवाले! हा शुभ! हा राज्यके धारणकरनेमें शूरवीर ! हा प्रिय! हा सुंदर आकृतिके धारणकरनेवाले! कुमार,मुझदुःखिनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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