SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरीर सर्वथा विनाशीक है जीवन विजलीके समान चंचल है और सब प्रकारकी संपदायभी पलभरमें नष्ट होने वाली हैं, यदि स्थिर है तो एक वचनही है ऐसा सब स्वीकार करते हैं । ऐसा समझकर हे मंत्रिन् सुमते मैंने जो वचन कहा है उस बचन पर तुझे भली भांति विचारकरना चाहिये जिससे कि संसारमें मेरा जीवन सार्थक समझा जावे निरर्थक नहीं । इसप्रकार जब महाराज श्रेणिकने कहा तब मतिसागर नामक मंत्री बोला, कि हे महाराज इस थोड़ी सी बातके विचारनमें आप क्यों चिंता करते हैं ? क्योंकि चिंता स्वर्गराज्यकी लक्ष्मी को विकारयुक्त बना सकती है फिर इस थोड़ीबिातके लिये चिंता करना क्या बड़ी बात हैं ? मैं अभी कुमार श्रेणिकको देशसे बाहिर निकाले देता हूं आप चिंता छोड़िये इस चिंतामें क्या रखखा है। मतिसागर मंत्रीकी अपने अनुकूल इस बातको सुनकर महाराज उपश्रेणिक मनमें अत्यंत प्रसन्न हुवे तथा उसमंत्रीसे यह बात भी कहते हुवे कि ___ हे मंत्रिन इसकायको तुम शीघ्र करो इसमें देरी करना ठीक नहीं है इसप्रकार महाराज उपश्रेणिककी आज्ञाको शिर पर धारणकर वह मति सागर नामका मंत्री कुमारश्रेणिकके समीपमें गया जिससमय वह कुमारके पास गया तो अपने पास बुद्धिमान मतिसागरमंत्री को आते देखकर अत्यंत चतुर कुमार श्रेणिकने उसका बड़ा भारी सन्मान किया और परम्परमें बड़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy