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________________ ( ४२ ) आदि लेकर वनको गये । इसबातको सुनकर फिरभी महाराज उपश्रेणिक मनमें अत्यंत दुःखित हुवे तथा सोचने लगे कि चलाती पुत्र किसरीतिसे इसराज्यका भोगनेवाला वने ? ___ज्योतिषी के बतलाये हुवे इतनी पराक्षाओं में कुमार श्रेणिकको उत्तीर्ण देख महाराज उपश्रीणकको संतोष न हुवा अतएव उन्होंने ज्योतिषी के वतलाये हुवे अंतिम निमित्तकी परीक्षाकोलिये फिर भी किसी समय अपने राजकुमारोंको बुलाया तथा | प्रत्येक घरमें महाराज उपश्रोणकने अत्यंत मधुर लड्डुओंसे भरे हुवे एक : पिटारेका मुख बंद कर रखवा दिया और उसके साथमें अत्यंत निर्मल जलसे भरा हुवा एक २ नवीन घड़ा भी रखवा दिया। इन सब बातों के पीछे लडुओके खाने के लिये और पानी पनिके लिये समस्त राजकुमारों को महाराज उपश्रीणकने आज्ञा भी दी। कुमार श्रोगिकके अतिरिक्त जितने राजकुमार थे सवेन उन लड्डुओंसे भरे हुवे पिटारेको एकदम हाथमेंलेकर विनाविचारेही शीघ्र खोलडाला और अपनी भूखकी शांतिकेलिये लड्ड खाना प्रारंभ कर दिया तथा प्यास लगने पर घडोंके मुंह खोल कर उनसे पानी पिया । परंतु कुमार श्रेणिक, जो उनसवकुमारोंमें अत्यंत बुद्धिमान था चट महाराजके मनका तत्पर्य समझ पिटारेकं मुखको विनाही उघाड़ें उसको लेकर इधर उधर हिलाने लगा और इस प्रकार उसपिटारेसे निकले हुवे चूर्णको खाकर उसने अपनी क्षुधाकी शान्तिकी तथा जहांपर घड़ा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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