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________________ इसप्रकार महाराज श्रेणिकके जीव भविष्यकाल होनेवाले श्री पद्मनाभतीर्थकरके चरित्रमें महाराज उपश्रेणिक के नगरप्रवेशको कहने वाला द्वितीय सर्ग समाप्त हुवा तीसरा सर्ग समरत कर्मोंसे रहित, प्राचीन, मनोहर, अखंड केवलज्ञान रूपो सूर्यके धारक, प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूं। । अनतर इसके महाराज मगधेश्वर उपश्रेणिकके मनमें इसप्रकार की चिंता हुई कि मेरे वहुतसे पुत्र हैं इनमेंसे मैं किस पुत्रको राज्यका भार दूं? इसप्रकार अतिशय दूरदर्शी महाखज उपश्रेणिकचे इसबातको चिरकाल तक बिचारकर, और इसबातको भी भली भांति म्मरणकर कि तिलकवती के पुत्र चलातकीको मैंने राज देदिया है। किसी ज्योतिषीको एकांतमें बुलाकर पूछा हे नैमित्तिक तू ज्योतिष शास्त्रका जाननेवाला है इसवातको शीघ्र विचार कर कह कि मेरे बहुतसे पुत्रोंमें राज्यका भोगनेवाला कोंन पुत्र होगा? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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