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________________ महाराज उपश्रेणिकके समस्त वृत्तांतको जानकर और भले | प्रकार उनके प्रश्नको भी सुनकर राजा यमदंडने विनय भावसे उत्तर दिया कि हेप्रभो समस्तभीलोंका स्वामी मैं राजा यमदंडहूँ और क्रीड़ा करता २ मैं इस स्थान पर आपहुंचा हूं। मेरी जाति क्षत्रिय है और अपने राज्यसे भ्रष्ट होकर मैं इस पल्लीमें रहता हूं, इसलिये हे महाभाग कृपाकर आप मेरे घर पधारिये और अपने चरण कमलोंसे मेरे घरको पवित्रकर मुझै अनुगृहीत कीजिये। ____ महाराज उपश्रेणिक तो अपने दुःखके दूरकरनेके लिये ऐसा अवसर देखही रही थे इसलिये जिससमय राजा यमदंडने महाराज उपश्रेणिकसे अपने घर चलेनेके लिये प्रार्थना की तो महाराज उपश्रेणिकने उसे विनीत समझकर शीघ्रही उसकी प्रार्थना को स्वीकार करलिया और उसके साथ साथ उसके घरकी और चल दिया। ___यद्यपि राजा यमदंड क्षत्रियवंशी राजा था और उसका आचार बिचार उत्तम गृहस्थांके समान होना चाहिये था किं तु उसका संबंध अधिक दिनोंसे भीलोंके साथ होगया था इसलिये उसकी क्रिया गृहस्थों की क्रियाओंके समान नहीं रही थीं, भीलोंकी क्रियाओंके समान होगई थीं। महाराज उपश्रेणिकने जब उसके घर जाकर उसके गृहस्थाचारको देखा तो वे एक दम दंग रहगये और राजा यमदंडसे कहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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