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________________ NNNNN W ( २४ ) समय इसीप्रकार विचार करते करते जब उसको यह बात मालूम होगई कि ये राजग्रहनगर के स्वामी महाराज उपश्रेणिक हैं तो झट वह अपने घोड़े परसे उतरपड़ा और अत्यंत विनयसे उसने महाराज उपश्रेणिकके दोनों चरणोंको नमस्कार किया और विनयपूर्वक उनके पास बैठिकर यह पूछने लगा-कि हे प्रभो किस दुष्ट वैरीने आपको इस भयंकर गड्ढे में लाकर गिरा दिया ? और हे मगधेश ऐसी भयंकर दशाको आप किस कारणसे प्राप्त हुवे ? कृपाकर यह समस्त समाचार सुनाकर मुझै अनुगृहीत करें। आपकी इसप्रकार दुःखमय अवस्थाको देखकर मुझे अत्यंत दुःख है । जिससमय महाराज उपश्रेणिकने भीलोंके स्वामी यमदंडका इसप्रकार भाक्त भरा बचन सुना तो उनका चित्त अत्यंत प्रसन्न हुवा और उन्होंने प्रियवचनोंमें राजा यमदंडके प्रश्नका इसप्रकार उत्तर दिया और कहा-मित्र यदि तुमको अत्यंत आश्चर्य करनेवाले मेरे वृत्तांतके सुननेकी अभिलाषा है तो ध्यान पूर्वक सुनो में कहता हूं । मेरे देशके समापदेशमें रहनेवाला सोमशर्मा नामका एक चंद्रपुरका स्वामी है । वह अपने पराक्रमके सामने किसीको भी पराक्रमी नहीं समझाता था और बड़े अभिमानसे राज्य करता था । जिससमय मुझै उसके इसप्रकारके अभिमानका पता लगा तो मैंने अपने पराक्रमसे वातकी वातमैं उसका अभिमान ध्वंस करदिया और उसे अपना सेवक बनाकर पुनः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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