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________________ ( ३७३ ) अनेक कष्ट भोगते हैं । इसप्रकार समस्त कुमारियां तीनोंकाल हृदयसे माताकी सेवा करेंगी और तीर्थंकर चक्रवर्ती नारायण प्रतिनारायण वासुदेव आदि महापुरुषों की कथा कहकर माताका मन आनंदित करेंगी। प्रायः स्त्रियों के गर्भके समय वृद्धि आलस्य तंद्रा वगेरह हुआ करते हैं किंतु माताके गर्भके समय न तो उदरवृद्धि होगी, न आलस्य और तंद्रा होगी, मुखपर सफेदाई भी न होगी । जब पूरे नौ मास हो जायगे तब उत्तम योगमें और उत्तम दिन चंद्रमा लग्न और नक्षत्रमें माता उत्तम पुत्ररत्न जनेगी । उस समय पुत्रके शरीरकी कांति से दिशा निर्मल हो जायगी । भवनवासियों के घरों में शंखशब्द होने लगेंगे । व्यंतरों के घरों में भेरी बजैंगी। ज्योतिषियोंके घर मेघध्वनि के समान सिंहासन रव और वैमानिक देवोंके यहां घंटा शब्द होंगे । अपने अवधिबलसे तीर्थंकर का जन्म जान देवगण अपने२ वाहनों पर सवार हो अयोध्या आंगे । प्रथम स्वर्गका इंद्र भी अतिशय शोभनीय ऐरावत गजपर सवार हो अपनी इंद्राणी के साथ अयोध्या आयगा । अयोध्या आकर इंद्राणी इंद्रकी आज्ञासे शीघ्रही प्रसूतिघरमें प्रवेश करैगी। वहां तीर्थंकरको अपनी माताके साथ सोता देख उनकी गूढ़भावसे स्तुति करेगी । माताको किसी प्रकारका कष्ट न हो इसलिये इंद्राणी उस समय एक मायामयी पुत्रका निर्माण करेंगी और उसै माताके पास सुलाकर मौर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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