SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४०) किसी समय महाराज इंद्र अपनी सभामें अनेक देवों के साथ बैठे थे। अपने वचनोंसे सम्यक्त्वकी महिमा गान करते हुवे वे कहने लगे कि ___ भरतक्षेत्रमें महाराज श्रेणिक सम्यग्दर्शनसे अतिशय शोभित है। वर्तमानमें उसके समान क्षायिक सम्यक्त्वका धारक दूसरा कोई नहि। जिसके सम्यग्दर्शनरुपी विशाल वृक्षको मिथ्यादर्शनरुपी गज तोड़ नहिं सकता और वह वृक्ष महाशास्त्ररुपी दृढमूलका धारक और स्थिर है। कुसंगम कुठार उसै छेद नहिं सकता। कुशास्त्ररुपी प्रबल पवन भी उसै | नहिं चला सकती। उसका सम्यक्त्वरुपी वृक्ष शास्त्ररूपी जलसे सिंचित है और उस सम्यग्दर्शनका दृढभावरूपी महामूल छिन्न नहिं किया जा सकता । महाराज इंद्रद्वारा श्रेणिकके सम्यग्दृष्टिपनेकी इस प्रकार प्रशंसा सुन सभा स्थित समस्त देव आश्चर्य करने लगे एवं अतिशय प्रीतियुक्त किंतु मनमें अति आर्ययुक्त दो देव शीघ्रही महाराज श्रेणीककी परीक्षार्थ पृथ्वीमंडळपर उतरे और कहां तो महाराज श्रेणिक मनुष्य ! और कहां फिर उसकी इंद्रद्वारा तारीफ ? यह भलेप्रकार विचार कर जो महाराज श्रेणिकके आनेका मार्ग था उस मार्ग पर स्थित हो गये । उनमें एक देवने पीछी कमंडलु हाथमें लेकर मुनिरुप धारण किया और दूसरेने अर्यिकाका । वह आर्यिका गर्भवती बन गई और मुनिवेषधारी वह देव मछलियोंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy