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________________ ( ३३६ ) यदि ठीक है तो धनयुक्त मनुष्यका चोरोंद्वारा मारना भी किसी प्रकार पापप्रद नहिं हो सकता । यदि कहो कि नरमेध और अश्वमेघ यज्ञमें जो प्राणी मरते हैं वे सीधे स्वर्ग चले जाते हैं तो उक्त यज्ञभक्तों को चाहिये कि वे अपने कुटुंबीजनों को भी यज्ञार्थ हनैं । प्रिय रुद्रदत्त ! वेद हो चाहें लोक हो किसी में पापप्रद प्राणीघातसे कदापि धर्म नहिं हो सकता प्राणिघात धर्म मानना बड़ी भारी भूल है । इस प्रकार अपने उपेदशसे वणिकने रुद्रदत्तकी आगम मूढ़ताभी छुड़वादी । सांख्यादि दूसरे २ मतों के सिद्धांतों का खंडन करता हुआ उसै जैन तत्वोंका उपदेश दिया जिससे उस ब्राह्मणने समस्तदोष रहित बड़े २ देवोंसे पूजित सम्यक्त्वमें अपने चित्तको जमाया । जिनोक्त तत्त्वोंमें श्रद्धा की और मिथ्यात्वकी कृपासे जो उसके चित्तमें मूढ़ता थी सब दूर हो गई । कदाचित् श्रावकत्रतों से युक्त सम्यक्त्वके धारी आपसमें परमस्नेही वे दोनों तत्र चर्चा करते हुए मार्गमें जा रहे थे पूर्वपापके उदयसे उन्हें दिशाभूल हो गई । वह वन निर्जन वन था । वहां कोई मनुष्य रास्ता बतलानेवाला न था । इसलिये जब उन दोनोंका संग छूट गया तो ब्राह्मण रुद्रदत्तने शीघ्रही सन्यास लेकर चारों प्रकारके आहारका त्याग करादया और प्रथम स्वर्ग में जाकर देव हो गया। वहांपर बहुत कालतक उसने देवियों के साथ उत्तमोत्तम स्वर्गसुख भोगे । आयुके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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