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________________ ( ३३०) आयु बांध पुनः किस रीतिसे उसका छेद किया सोभी कह सुनाया । इस प्रकार गौतम गणधरके वचनोंसे अतिशय संतुष्ट अनेक बड़े२ राजाओंसे पूजित महाराजने जिनराजके चरणकमलोंसे अपना मन लगाया और समस्त कल्याणोंसे युक्त हो अपने पुत्र पौंत्रोके साथ शत्रु रहित हो गये । पापोंसे जो पहिले सप्तम नरककी आयु बांध ली थी उस आयुका अपने उत्कृष्ट भावों द्वारा महाराज श्रेणिकने छेद कर दिया तथा तीर्थंकर नाम कर्मकी शुभ भावना भानसे भविष्यतमें तीर्थंकर प्रकृतिका बंध बांधकर अतिशय शोभाको धारण करने लगे । देखो मावोंकी विचित्रता ! कहां तो सप्तम नरककी उत्कृष्ट स्थिति और कहां फिर केवल प्रथम नरककी मध्यम स्थिति ? यह सब धर्मका ही प्रसाद है । धर्मकी कृपासे जीवोंको अनेक कल्याण आकर उपस्थित हो जाते हैं और धर्मकी कृपासे तीर्थंकर पदकी भी प्राप्ति हो जाती है इसलिये उत्तम पुरुषोंको चाहिये कि वे निरंतर धर्मका आराधन करें। इस प्रकार भविष्यत कालमें होनेवाले श्रीपद्मनाभ तीर्थंकरके जीव महाराज श्रेणिकके चरित्रमें महाराज श्रेणिकको क्षायिक सम्यकदर्शनकी उत्पत्ति वर्णन करनेवाला बारहवा सर्ग समाप्त हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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