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कहीपर मनोहर बागों में, पुण्यात्मा पुरुषोंद्वारा प्राप्त करने योग्य, अपनी मनोहर स्वर्गपुरीको छोड़ देवतागण अपनी देवांगनाओंके साथ कोड़ा करते हैं । वहां गोपालोंकी रमणियों द्वारा गायेहुवे मनोहर गीतरूपी मंत्रोंसे मंत्रित तथा उनके गीतोमें दत्तचित्त, और भयरहित हिरणोंका समूह निश्चल खड़ा रहता है और भगानेपर भी नहीं भागता है । और वहां जब तलावों में प्याससे अत्यंत व्याकुल हो अनेक हाथी पानी पीने आते हैं तब हथिनियोंको देखकर उनके विरहसे पीडित होकर अपना जीवन छोड़ देते हैं । यह मगधदेश नानाप्रकार के उत्तमोत्तम तीर्थोकर सहित, नानाप्रकारके देव विद्याधरोंसे सेवित, और विशेषरीतिले अनेक मुनिगणोंकर शोभित है इसका कहां तक वर्णन करें ।
इसी मगधदेश में राजघरोंसे शोभित, अनेक प्रकारकी शोभाओंसे मंडित, धनसे पूर्ण तथा अनेक जनासे ध्याप्त, राजग्रह नामक एक नगर है। राजग्रहनगरमें न तो अज्ञानी मनुष्य हैं, और न शीलरहित स्त्रियां हैं, और न निर्धन पुरुष बसते हैं । वहां पुरुष उत्तम कुवरके समान ऋद्धिके धारण करनेवाले और स्त्रियां देवांगनाओंके समान हैं । जगह २ पर कल्प वृक्षोंके समान बृक्ष हैं । और स्वगोंके विमानोंके समान सुवर्णसे घर बने हुये हैं । बहांका राजा इन्द्रके समान अत्यंत बुद्धिमान है । वहां ऊंचे २ धान्योंके
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