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(३१३ ) शीघ्र कहो तुम्हे कौनसी चिंता ऐसी भयंकरता से सता रही है । महाराज के ऐसे वचन सुन रानीने कहा-- ___कृपानाथ ! मुझे यह दोहला हुआ है कि मैं ग्रीषमकालमें वरसते हुए मेघमें हाथीपर चढ़कर घूमूं कितु यह इच्छा पूर्ण होनी दुःसाध्य हैं इसलिये मेरा शरीर दिनोंदिन क्षीण होता चला जाता है । रानी की ऐसी काठन इच्छा सुन तो महाराज अचंभे में पड़गये । उस इच्छाके पूर्णकरनेका उन्हें कोई उपाय न सूझा इसलिए वे मोन धारणकर निश्चेष्ट बैठ गये । कुमार अभयने महाराज की यह दशा देखी तो उन्हे बड़ा दुःख हुवा वे महाराज के सामने इस प्रकार विनय से पूछने लगे । पूज्य पिता ! मैं आपको प्रबलचिंतासे आतुर देखरहा हूं मुझे नहीं मालूमपड़ता अकारण आप क्यों चिंता कररहे हैं ? कृपया चिंताका कारण मुझेभी सुनावै । पुत्र अभयके ऐसे बचन सुनक महाराजश्रेणिकने सारी आत्मकहानी कुमारको कह सुनाई और चिंता दूरकरने का कोई उपाय न समझ वे अपना दुख भी प्रगट करने लगे।
कुमारअभय अतिबुद्धिमान थे ज्योंही उन्होनें पिताके मुखसे चिंताका कारणसुना शीघ्रही संतोषप्रद वचनोंमें उन्होंने कहा-पूज्यवर ! यह बात क्या कठिन है मैं अभी इस चिंता के हटाने का उपाय सोचता हूं आप अपने चित्तको मलिन न करें। तथा चिंता दूर करनेका उपायभी सोचने लगे।
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