SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुःख हुवा । रानी पास आकर वे स्नेहपरिपूर्ण वचनोमें इस प्रकार कहने लगे। प्राणवल्लभे ! मेरे नेत्रों को अतिशयआनद देनेवाली प्रिये ! तुम्हारे चित्तमें ऐसी कौनसी प्रबलचिंता विद्यमान है जिससे तुम्हारा शरीर रात दिन क्षीण और कांतिरहित होता चला जाता है । कृपाकर उसचिंता का कारण मुझसे कहो बराबर उसके दूर करनेके लिए प्रयत्न किया जायगा । महाराजाके ऐसे शुभ वचन सुन पहले तो लज्जावश रानी चेलनाने कुछ भी उत्तर न दिया किन्तु जब उसने महाराज का आग्रह विशेष देखा तो वह दुःखाश्रुओंको पोछती हुई इसप्रकार विनयसे कहने लगी प्राणनाथ ! मुझसरीखी अभागिनी डांकिनी स्त्रीका संसार में जीना सर्वथा निस्सार है यह जो मैंने गर्भधारण किया है सो गर्भ नहीं आपकी आभिलाषाओंको मूलसे उखाड़नेवाला अंकुर बोया है । इस दुष्टगर्भकी कृपासे मैं प्राणलेनेवाली डांकिनी पैदाहुई हूं। प्रभो ! यद्यपि मैं अपने मुखसे कुछ कहना नहिं चाहती तथापि आपके आग्रहवश कुछ कहती हूं। मुझे यह खराब दोहला हुआ है कि आपके वक्षःस्थलको विदार रक्त देखू । इस दोहलाकी पूर्तिहोना कठिन है इसलिये मैं इसप्रकार अतिचिंतित हूं। रानी चेलनाके ऐसे वचन सुन महाराजश्रेणिकने उसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ____www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy