SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुखमासुग्वमा है जिसकी रचना विदेह क्षेत्रके समान होती है, तीर्थंकर चक्रवर्ती बलभद्र नारायण आदि महापुरुषोंकी उत्पत्ति भी इसी कालमें होती है । पांचवां काल मुखमा है जिसमें पुण्य तथा पापसे शुभाशुभगतिकी प्राप्ति होती है, यह दुःखोंका भंडार है तथा इस पंचमकालमें मनुष्योंकी आयु शरीर धर्म सब कम होजाते हैं । इसके पश्चात् धर्मकर रहित, पापस्वरूप, दुष्टमनुष्योंसें व्याप्त, और थोड़ी आयुवाले जीवोंसाहित, छठवां दुःखमनुःखम काल आता है । इसप्रकार मोक्षमार्ग साधन करनेकेलिये दीपकके समान, नानाप्रकारकी शुभ क्रियाओंसहित, और पुण्यके स्थान, इस आर्यखंडमें उक्त प्रकारके काल सदा प्रवर्तमान रहते हैं। __ऐसा यह अर्यखंड नानाप्रकारके बड़े २ देशोंसे घ्याप्त, पुर और ग्रामोंसे सुशोभित, बहुतसे मुनियोंसे पूर्ण, और पुण्यकी उत्पत्तिका स्थान, अत्यंत शोभायमान है। इस आर्यखंडके मध्यमें जिसप्रकार शरीरके मध्यभागमें नाभि होती है उसीप्रकार इस पृथ्वीतलके मध्यभागमें मगध नामक एक देश है जो अनेक जनोंसे सावेत, और विशेषतया भव्यजनोंसे सेवित, है । इस मगधदेशमें धन धान्य और गुणोंके स्थान मनुप्योंसे व्याप्त, प्रकट रीतिसे संपत्तिके धारी, अनेक ग्राम पास पास वसे हुये हैं । | इस मगधदेशमें, फलकी इच्छा करनेवाले मनुष्योंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy