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________________ ( ३०२ ) चूर्ण एवं अन्यान्य औषधियोंके ग्रास भी दिये । एवं आहार लेचुकनेपर मुनिराज वनको चलेगये । ____ इसप्रकार औषधिके सेवन करनेसे मुनिराजका रोग सर्वथा नष्ट होगया । वे शीघ्र ही नीरोग होगये । ____ किसीसमय किसी वैद्यके साथ महाराज श्रीकृष्ण वनमें गये। जहां पर परम पवित्र मुनिराज विराजमान थे उसी स्थान परपहुंच उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार किया और मुनिराजके सामने ही वैद्यने यह कहा-प्रजानाथ ! मुनिराजका रोग दूर होगया है । वैद्यके मुखसे जव मुनिराजने ये वचन सुने तो वे इसप्रकार उपदेश देनेलगे। नरनाथ ! संसारमें जीवोंको जो सुखदुःख कल्याण और अकल्याण भोगने पड़ते हैं उनके भोगने में कारण पूर्वोपाजित शुभाशुभ कर्म हैं । जिससमय ये शुभ अशुभ कर्म सर्वथा नष्ट होजाते है उससमय किसीप्रकारका सुखदुःख भोगना नहिं पड़ता । कर्मोंके सर्वथा नष्ट होजानेपर परमोत्तमसुख मोक्ष मिलता है। राजन् शुभ अशुभकर्मरूपी अंतरंग व्याधिके दरकरनेमें अतिशय पराक्रमी चक्रवर्ती भी समर्थ नहिं हो सकते । ये औषधि आदिक व्याधिकी निवृत्तिमें बाह्य कारण हैं। उनसे अंतरंगरोगकी निवृत्ति कदापि नहिं हो सकती। ___ मुनिराजतो वीतराग भावसे यह उपदेश देरहे थे उन्हें किसीसे उससमय द्वेष न था किंतु वैद्यराजको उनका वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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