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( २९८ ) उससमय और कुछ न सूझी मुनिराजको ही चोर समझ वह मुक्के घूसे डंडोंसे मारने लगा और कष्टप्रद अनेक कुवचन भी कहनेलगा। इसप्रकार मार धाड़ करने पर भी जब उसने मुनिराजसे कुछ भी जवाब न पाया तो वह हताश हो अपने नगरको चल दिया। ___वह कुछ ही दूर गया कि उसे फिर मणिकी याद आई । वह फिर मदांध होगया इसलिए उसने वहींसे फिर एक डंडा मुनिराज पर फेंका । दैवयोगसे वह नीलकंठ भी उसी वनमें मुनिराजके समीप किसी वृक्षपर बैठा था। इसलिये जिससमय वह डंडा मुनिकी ओर आया तो उसका स्पर्श नलिकंठसे भी होगया । डंडेके लगते ही नील कंठ भगा और जल्दीमें पद्मरागमणि उसके मुंहसे गिरगई ।
पद्ममरागमणीको इसप्रकार गिरी देख गारदेव अचंभेमें पड़गया। अब वह अपने अविचारित काम पर बार बार घृणा करने लगा। माणिको उठा वह नगर चला गया । साफ कर उसे राजमंदिरमें पहुंचादी और संसारसे सर्वथा उदासीन हो उसी बनमें आया। मुनिराजके चरण कमलोंको भक्ति पूर्वक नमस्कारकर अपने पापोंकी क्षमा मांगी। एवं उन्हींके चरणों में दीक्षा धारणकर दुर्धर तप करने लगा । सेठि जिनदत्त ? कहो । क्या उस गारदेवका विना विचारे किया वह काम योग्य था!निश्चय समझो विना विचारे जो काम करपाड़ते हैं उन्हें निस्ममि दुःख भोगने
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