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________________ ( २८९ ) किसीदिन वह सर्वजनोंके सामने अपने हाथमें पिंड लेना ही चाहती थी कि अचानक ही वह भद्र नामका बैल भी वहां आगया । वह सब समाचार पहिलेसे ही सुन चुका था इसलिए आते ही उसने तप्त लोहेका पिंड अपने दांतों में दबा लिया । वहुत काल मुखमें रखनेपर वह जरा भी न जला । एवं सबोंको प्रकटरीतिसे यह वात जतलादी कि ब्राह्मण सोमशर्माका बालक मैंने नहिं मारा । मैं सर्वथा निर्दोष हूं। भद्रककी यह चेष्टा देख नगर निवासी मनुष्यों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। कुछ दिन पहिले जो वे विना विचारे भद्रकको दोषी मानचुके थे वही भद्रक अब उनकी दृष्टि में निर्दोष बनगया । अब वे भद्रककी बार बार तारीफ करने लगे । उनके मुखसे उससमय जयकार शब्द निकले । तथा जिसप्रकार भद्रकने उसप्रकारका कामकर अपनी निर्दोषताका परिचय दिया था जिनमतीने भी उसीप्रकार दिया वेधड़क उसने तप्तपिंडको अपनी हथेली पर रखलिया जब उसका हाथ न जला तो उसने भी यह प्रकटरीतिसे जतला दिया कि मैं व्यभिचारणी नहीं हूं । मैंने आजतक परपुरुषका मुह नहीं देखा है। मैं अपने पतिकी सेवाम ही सदा उद्यत रहती हूं और उसीको देव समझती हूं। जिससे सब लोग उसकी मुक्तकंठसे तारीफ करने लगे और उसकी आत्माको भो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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