________________
मेरुपर्वत तीनोंलोकमें अनादिनिधन, अकृत्रिम, स्वभावसे ही सिद्ध और अनेकपर्वतोंका स्वामी अपने आपही सुशोभित है । यह पर्वत अत्युतम शोभाको धारण करनेवाले जम्बूद्वीपके मध्यभागमें अनुपम सुख मोक्षको जानेकी इच्छाकरनेवाले भव्यजीवों को मोक्षके मार्गको दिखाता हुवा, और जिनेन्द्रभगवानके गंधोदक से पवित्र हुवा, एक महान तीर्थपनेको प्राप्त हुवा है । चारण ऋद्धिकें धारण करनेवाले मुनियोंसे सदा सेवनीय है, समस्त पर्वतों का राज़ा है । श्रेष्ठ कल्पवृक्षोंके फूलोंसे स्वर्गलोकको भी जतिने वाले इस मेरुपर्वतपर स्वर्गको छोड़कर इन्द्र भी अपनी इन्द्राणियों के साथ क्रीड़ा करने को आते हैं। यह मेरुपर्वत आधिक ऊंचा होनेके कारण अत्युच्च कहा गया है, स्वयंसिद्ध होनेसे अकृत्रिम कहा गया है, और पृथ्वीका धारण करनेवाला होने के कारण धराधीश, अर्थात् पृथ्वीका स्वामी कहा गया है । इस मेरुपर्वतके ऊपर विराजमान चैत्यालयोंके और स्तुतिकरनेयोग्य परमात्माके ध्यान करनेवाले योगीन्द्रोंके स्मरणसे मनुष्योंके समस्त पाप नष्ट होजाते हैं । इस मेरुपर्वतके माहात्म्यका हम कहांतक वर्णन करें इस मेरुपर्वतके महात्म्यका विस्तार बड़े बड़े करोड़ों ग्रन्थोंमें भले प्रकार वर्णन किया गया है । ____ इसी मेरुपर्वतकी दक्षिणदिशामें जहां उत्तम धान्य | उपजाते हैं मनोहर, अनेकप्रकारकी विद्याओंसे पूर्ण, और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com