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________________ ( २८४ ) ___ जब विन शांत होगया तव चोरको जानेकी आज्ञा दे दी तथा यह समझ कि चोर चला गया वे अपने किवाड़ बन्द कर सो गये । किंतु वह दुष्ट उसी घरमें छिप गया और दाव पाकर मालमटा लेकर चंपत होगया । प्रातःकाल सेठि सुभदत्त की आंख खुली । अपनी चोरी देख उन्हें परम दुःख हुआ । वे कहने लगे मैंने तो उस दुष्ट चोरकी रक्षा की थी किंतु उस दुष्टने मेरे साथ भी यह दुष्टता की । यह बात ठीक है दुष्ट अपनी दुष्टता कदापि नहिं छोड़ते तथा ऐसा कुछसमय सोच विचारकर वे शान्त होगये । इसलिये हे मुनिनाथ ? आपही कहैं क्या उस चोरका सेठि सुभद्रदत्त के साथ वैसा वर्ताव उत्तम था ! मैंने उत्तर दिया।। ___ सर्वथा अनुचित । उसने सेठि सुभद्रदनके साथ बड़ा विश्वासघात किया। वह चोर बड़ा पापी और कुमार्गी था। इसमें जरा भी संदेह नहीं । अब मैं भी तुम्हें कथा सनाता हूं मुझै विश्वास है अब की कथासे तुम्हें जरूर संतोष होगा तुम ध्यान पूर्वक सुनो। ___इसीलोकमें कामदेवका रंगस्थल आतिशय मनोहर एक वंग देश है। वंगदेशमें एक चंपापुरी नामकी नगरी' है। चंपापुरीमें जातीय मुकुद केतकी चंपा आदिके वृक्ष सदा हरे भरे फले फूले रहते हैं और सदा उत्तम मनुष्य निवास करते हैं । चपापुरमें एक ब्राह्मण, जो कि भलेप्रकार वेद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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