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________________ ( २६५ ) था तत्काल उसे खोदा। वहां घड़ा था नहिं इस लिये जब उसै घड़ा न मिला तो वह इस प्रकार संकल्प विकल्प करने लगा हाय ! मेरा धन कहां गया ? किसने लेलिया ? अरे मेरे प्राणोंके समान, यत्नसे सुरक्षित, धन अव किसके पास होगा ! हाय रक्षार्थ मैंने दूसरी जगहसे लाकर यहां रक्खा था उसै यहांसे भी किसी चोर ने चुरा लिया ? जब वादही खेत खाने लगी तो दूसरा मनुप्य कैसे उसकी रक्षा कर सकता है। मुनिराजके सिवाय इस स्थान पर दूसरा कोई मनुष्य नहिं रहता था । शायद मुनिराजके परिणामोंमें मलिनता आ गई हो । उन्होंने ही ले लिया हो । पूछनेमें कोई हानि नहिं चलूं मुनिराज से पूछ लूं तथा ऐसा कुछ समयपयत विचारकर शीघ्र ही जिनदत्तने कुछ नोकर मेरे अन्वेषणार्थ भेजे। और स्वयं भी घर से निकल पड़ा । एवं कपटवृत्तिसे जहां तहां मुझे ढूढ़ने लगा। मैं बनमें किसी पर्वतकी तलहटी में ध्यानारूढ़ था। मुझे जिनदत्तकी कपटवृत्तिका कुछ भी ख्याल न था । अचानक ही घूमता घूमता वह मेरे पास आया । भक्तिभावसे मुझे नमस्कार किया एवं कपटवृत्तिसे वह इसप्रकार प्रार्थना करने लगा। ___ प्रभो ! दीनबंधो ! जबसे आपने उज्जयनी छोड़दी है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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