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करता था । शिवशर्माकी प्रियभार्या कमलश्री थी। कमलश्री अतिशय मनोहरा सुवर्णवर्णा एवं विशालनेत्रा थी। शिवशर्मा के प्रियभार्या कमलश्रीसे उत्पन्न आठ पुत्ररत्न थे । आठो ही पुत्र इंद्रके समान सुन्दर थे। भव्य थे। और धन आदिसे मत्त थे । उन आठो भाइयोंके वीच मैं अकेली भैन थी । मेरा नाम भद्रा था । पिता माताका मुझपर असीम प्रेम था। सदा वे मेर। सन्मान करते रहते थे । मेरे भाई भी मुझपर परम स्नेह रखते थे। मैं अतिशय रूपवती और समस्त स्त्रियोंमें सारभूत थी इसलिए मेरी भोजाई भी मेरा पूरा पूरा सन्मान करती थी । पाड़पड़ोसी भी मुझपर अधिक प्रेम रखते थे और मुझै शुभनामसे. पुकारते थे। मुझै तुंकार शब्दसे बड़ी चिड़ थी। इसलिये मेरे पिताने राजसभामें भी जाकर कह दिया था।
राजन् ! मेरी पुत्री तुकार शब्दसे बहुत चिड़ती है इसलिये क्यातो मंत्री क्या नगर निवासी और बांधव, कोई भी उसके सामने तुंकार शब्द न कहै । मेरे पिताके ऐसे वचन सुन राजाने मुझे भी बुलाया । राजाकी आज्ञानुसार मैं दरबारमें गई । मैने वहां स्पष्टरीतिसे यह कह दिया कि जो मुझे तुकारी शब्दसे पुकारै गा राजाके सामने ही मैं उसके अनेक अनर्थ कर पाडूंगी । तथा ऐसा कहकर मैं अपने घर लौट आई । उसदिनसे सब लोगोंने चिड़से मेरा नाम तुंकारी ही रख
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