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________________ अपने कंधेपर रख लिया। किंतु ज्योंही बड़ा लेकर जिनदत्त कुछ चला ठोकर खा चट जमीन पर गिरगया और घड़ाके फूट जाने से फिर सारा तेल फैलगया । ब्राह्मणीकी आज्ञानुसार जिन दत्तने तीसरा घड़ा भी अपने कंधेपर रक्खा कंधेपर रखते ही वह भी फूट गया । इसप्रकार बराबर जव तीन घड़े फूट गये तो जिनजत्तको परम खेद हुआ खिन्न चित्त हो उसने ब्राह्मणीसे फिर सब हाल जाकर कह सुनाया । और कहते कहते उसका मुख फीका पड़ गया। तीनों घडोंके इसप्रकार फूटजानेसे सेठि जिनदत्तको अति दुःखित देख तुंकारीका चित्त करुणासे आई होगया । डाट डपटके वदले उसने जिनदत्तसे यही कहा। प्यारे भाई ! यदि तीन घड़े फूट गये हैं तो फूट जाने दे । उसकेलिये किसीवातका भय मत कर । मेरे घरमें बहुतसे घड़े रक्खे हैं : जब तक तुम्हारा प्रयोजन सिद्ध न हो तब तक तुम एक एक कर सबोंको ले जाओ । ब्राह्मणीके ऐसे स्नेह भरे वचन सुन जिनदत्तको परम आनंद हुवा। उसकी आज्ञानुसार उसने शीघ्र ही घड़ा कंधेपर रखलिया और अपने घरकी ओर चलदिया। ___ ब्राह्मणीके ऐसे उत्तम वर्तावसे जिनदत्तके चित्तपर असा धारण असर पड़ गया था । ब्राह्मणीके स्नेहयुक्त वचनोंने उसै अपना पक्का दास वनालिया था । इसलिये ज्योंही वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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