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________________ ( २५५ ) अचानक उसकी दृष्टि मुझपर पड़ी । ज्योंही उसने मुझे अर्धदग्ध मम्तक युक्त और वेहोश देखा मारे आश्चर्यके उसका ठिकाना न रहा । वह शीघूही. भागकर नगरमें आया. और जिनधर्मके परम भक्त जो जिनदत्त आदि सेठ थे उनसे मेरा। सारा हाल कह सुनाया । ... ___ ज्योही जिनदत्त आदि सेठोंने मालीके मुझसे मेरी ऐसी। भयंकर दशा सुनी उन्हें परमदुःख हुवः।। मारे दुःखके वे हाहाकार करने लगे और सबके सब मिलकर तत्काल श्मसान। भृमिकी ओर चलदिये। ____श्मसानभूमिमें आकर मुझै उन्होंने भक्तिपूर्वक प्रणाम : किया । मेरी ऐसी बुरी अवस्था देख वे और भी अधिक दुःख मनाने लगे। किस दुष्टने मुनिराजपर यह उपसर्ग किया है ? इसप्रकार क्रुद्ध हो भव्य जिनदत्तने मुझै शीघ्र उठाया । और व्याधिके दूर करनेके लिये मुझे अपने घर लेगया । जिस समय मैं घर पहुंच गया.। तत्काल जिनदत्त किसी वैद्यक छ गया। मेरी व्याधिके शांत्यर्थ वैद्यसे उसने औषधि मांगी और मेरी सारी . अवस्था. कह मनाई। भव्य जिनदत्तके मुखसे मुनि राजकी. यह अवस्था मुन वैद्यने कहा प्रिय जिनदत्त ! मुनिराजका रोग अनिवार्य है। जब तक लाक्षामूल तेल न मिलैगा कदापि मैं उनकी . चिकित्सा नहिं करसकता। लाक्षामूल तैलसे ही यह रोग जा सकता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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