SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५१ ) प्रिये ! समस्त लोकको भय उत्पन्न करनेवाला वह यम दूत कहां है । मुझे भी शीघ्र दिखा । मैं उसे देखना चाहता हूं मेरे वचन सुनते ही रानीने वाल चट उखाड़ लिया । और मेरी हथेली पर रखदिया । ज्योंही मैंने अपना सफेद बाल देखा । अपना काल अति समीप जान मैं चट राज्यसे विरक्त होगया । जो विषय भोग कुछ समय पहिले मुझे अमृत जान पड़ते थे वे ही हलाहल विष बनगये । मैं अपने प्यारे पुत्र और स्त्रियोंको भी अपना शत्रु समझने लगा | मैंने शीघ्र ही चंद्रशेखरको बुलाया — और राज्यकार्य उसै सौंप तत्काल वन को ओर चल पड़ा । वनमें आते ही मुझे मुनिवर गुणसागर के दर्शन हवे | मैंने शीघ्र ही अनेक राजाओंके साथ मुनिदीक्षा धारण करली । जेनसिद्धांतके पढ़ने में अपना मन लगाया । एवं जब मैं जैनसिद्धांतका भलेप्रकार ज्ञाता होगया और उग्र तपस्वी बनगया तो मैं सिंहके समान इस पृथ्वीमंडल पर अकेला ही विहार करने लगा - राजन् ! अनेक देश एवं नगरोंमें विहार करता २ किसी दिन मैं उज्जयनी नगरीमें जा पहुंचा । और वहांकी श्मसान भूमिमें मुर्दे के समान आसन बांधकर ध्यान के लिये बैठगया । वह समय रात्रिका था इसलिये एक मंत्रवादी जोकि अनेक मत्रोंमें निष्णात, वैताली विद्याकी सिद्धिका इच्छुक, एवं जातिका कौली था वहां आया । और मेरे शरीरको मृतशरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy