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________________ ( ३ ) वैौरियों के विजयसे कीर्तिको प्राप्त करने वाले, हितैषी, और पुण्परूपी मेरुपर्वत के शिखरपर निवास करनेवाले अर्थात् अत्यंत पुण्यात्मा गुरूओं को भी मैं नमस्कार करता हूं । तथा इस भरत क्षेत्र में आगे होनेवाले, समस्ततीर्थंकरोमें उत्तम, अत्यंत तेजस्वी, श्रीपद्मनाभ तीर्थंकरको भी मैं समस्त विघ्नोंकी शांतिकेलिये नमस्कार करता हूं, जो पद्मनाभभगवान, उत्सर्पिणीकालके कुछ समयके व्यतीत होने पर, इस भरतक्षेत्र में, पांचप्रकारके अतिशयोंकर सहित, सैकड़ों इंद्र और देवोंसे पूजित, उत्पन्न होवेंगे, और चिरकालसे विद्यमान पापरूपी वृक्ष केलिये वज्र के समान होंगे। तथा चतुर्थकालकी आदिमें जब समस्त धर्ममार्गों का नाश होजायगा, अहंकार व्याप्त होगा, उससमय जो भगवान समस्तजीवोंके अज्ञानांधकारको नाशकर, मोक्षके मार्गके प्रकाशनपूर्वक धर्मकी और उन्मुख करेंगे । और जिस पद्मनाभभगवानने पहिले अपने श्रोणिक भव में ( श्रेणिकअवतार में ) श्रीमहावीरस्वामी भगवानके समीपमें, अनादिकालसे विद्यमान मिथ्यात्वको शीघ्र ही दूर किया तथा अतिशय मनोहर निर्मल समस्तदोषोंसे रहित क्षायिक सम्यक्त्वको धारण किया और समस्त इन्द्रियोंको संकोचकर शुद्ध सम्यग्दर्शन से विभूषित हुये । जिस भगवानने महावीर स्वामीके सामने तीर्थंकर प्रकृतिका बंध किया, और जिस पुण्यात्मा पद्मनाभभगवानने समस्तलोक में सर्वथा आश्चर्य 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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