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________________ ....~~~... विचार किया है सो ठीक नहीं, आत्महत्यासे रत्तीभर पापोंका नाश नहीं हो सकता । इस कर्मसे उल्टा घोर पापका बंध ही होगा ! मगधेश ! अज्ञान वश जो जीव तलवार विष आदिसे अपनी आत्माका घात करलेते हैं। वे यद्यपि मरणके पहिले समझ तो यह लेते हैं कि हमारी आत्मा कष्टोंसे मुक्त हो जायगी। परभवमें हम सुख मिलेंगे। किंतु उनकी यह बडी मूल समझनी चाहिये । आत्मघातसे कदापि सुख नहीं मिल सकता । आत्मघातसे परिणाम संक्लेशमय हो जाते हैं। संक्लेशमय परिणामोंसे अशुभ बंध होता है । और अशुभ बंध से नरक आदि घोर दुर्गतिओंमे जाना पडता है । राजन् ! यदि तुम अपना हित ही करना चाहते हो तो इस अशुभ संकल्पको छोडो । अपनी आत्माकी निंदा करो। एवं इस पापका शास्त्र में जा प्रायश्चित लिखा है उसे करो। विश्वास रक्खो पापोंसे मुक्त होने का यही उपाय है । आत्महत्याते पापोंकी शांति नहीं हो सकती। ____ मुनिराजके ये वचन सुन तो महाराज अचंभेमें पड़गये । वे महारानी के मुंहकी आर ताककर कहने लगे । सुंदरि ! यह बात क्या हुई ? मुनिराजने मेरे मनका अभिप्राय कैसे जान लिया ? अहा ! थे मुनि साधारण मुनि नहीं। किं तु कोई महामुनि हैं । महाराजके मुखसे यह बात सुन रानी चलनाने कहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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