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________________ ( २०४ .) कीलित कर दिये हैं। अस्तु मैं अभी इसके कर्मका इसे मजा चखाता हूं । तथा एसा विचार कर उन्होंने शीघ ही म्यानसे तलवार सूत ली । आर मुनिके मारणार्थ बडे वगस उनकी आर पर झपटे। ____ मुनिके मारनकोलिये महाराज जा ही रहे थे। अचानक ही उन्हें एक सर्प, जोकि अनेक जीवोंका भक्षक एवं फणा ऊंचे किये था, दीख पड़ा । एवं उसे अनिष्टका करनेवाला समझ शीघ्र महाराजने मारडाला । और अति क्रूर परिणामी हो पवित्र मुनि यशोधरके गलेमें डाल दिया। जैनसिद्धांतमें फलप्राप्ति परिणामाधीन मानी है। जिस मनुष्यके जैसे परिणाम रहते हैं । उसै वैसे ही फलकी प्राप्ति होती है । महाराज श्रेणिकके उससमय अति रोद्र परिणाम थे । उन्हें तत्काल ही, जिस महामभानस्कमें तेतीस सागरकी आयु, पांचसो धनुषका शरीर, एवं विद्वानोंके भी वचनके अगोचर घोर दुःख हैं उस महाप्रभा नामके सप्तम नर्कका आयुबंध बंध गया । ____यह बात ठीकभी है जो मनुष्य विना विचारें दूसरोंको कष्ट करपाड़ते हैं । विशेष कर साधु महात्माओंको उन्हें घोरं दुःखों का सामना करना पडता है। महात्माओंको कष्ट देनेवाले मनुप्योंको सदा नरकादि गतियां तयार रहती है । किंतु मदोन्मत्तोंको इस बानका कुछभी ज्ञान नहीं रहता। वे चट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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