SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौशांबीपुरीका स्वामी जो नीतिपूर्वक प्रजापालक, कल्पवृक्षके समान दाता था राजा वसुपाल था । राजा वसुपालकी पटरानी का नाम अश्वनी था । रानी अश्विनी स्त्रियोंके प्रधान प्रधान गुणोंकी आकर, मृगनयना चंद्रवदना एवं रमणीरत्न थी। कांशांबी पुरीमें कोई सागरदत्त नामका सेठि रहता था । सागरदत्त अपार धनका खामी था। अनेक गुणयुक्त होनेके कारण राजमान्य था । और विद्वान था । सागरदत्तकी स्त्रीका नाम वसुपती था। वसुमती रात्रिविकसी कमलोंको चांदनीके समान सदा सागरदत्तके मनको प्रसन्न करती रहती थी। मुखसे चंद्रशोभाको भी नीचे करने वाली थी। एवं प्रत्येक कार्यको विचारपूर्वक करती थी। ____उसीसमय कौशांबीपुरीमें सुभद्रदत्त नामका सेठि भी निवास करता था। सुभद्रदत्त सागरदत्तके समान ही धनी था । धर्मात्मा एवं अनेकगुणों का भंडार था। सेठि सुभद्रदतकी प्रिय भार्या सागरदत्ता थी जो कि अतिशय रूपवती गुणवती एवं पतिभक्ता थी। ____ कदाचित् सेठि सागरदत्त और सुभद्रदत्त आनंदपूर्वक एक स्थान में बैठे थे । परस्परमें और भी स्नेह वृद्धयर्थ सेठि सुभद्रदत्तने सागरदत्तसे कहा। प्रिय सागरदत्त! आप एक काम करें यदि भाम्यवश आपके पुत्र और मेरे पुत्री अथवा मेरे पुत्र आर आपके पुत्री होवे तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy