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________________ ( १८६ ) बड़ी गंभीरता एवं सभ्यतासे उसने शीघ्र ही पूछा--- ____बौद्ध गुरुओ! आपका उपदेश मैंने सुना किं तु मुझे इसबाताका संदेह रहगया । आप यह बात कैसे जानते हैं कि दिगंबर मुनियोंकी सेवासे परभवमें क्लेश भोगने पड़ते हैं। दोन दरिद्री होना पड़ता है ! और बौद्ध गुरुओंकी सेवासे यह एकभी बात नहीं होती । बौद्ध गुरुसेवासे मनुष्य परभवमें मुखी रहते हैं। इत्यादि कृपाकर मुझे शीघ्र कहैं---- रानीके इन वचनोंको सुन बौद्ध गुरुओंने कहा-चेलने ! तुम्हें इस वातमें सन्देह नहीं करना चाहिये । हम सर्वज्ञ हैं। परभवकी बात बताना हमारे सामने कोई बड़ी बात नहीं । हम विश्वभर की बातें बता सकते हैं । बौद्धगुरुओंके ऐसे बचन सुन रानी चेलनाने कहा बौद्ध गुरुओ ! यदि आप अखंडज्ञानके धारक सर्वज्ञ हैं । तो मैं कल आपको भक्ति पूर्वक भोजन कराकर आपके मतको ग्रहण करूंगी । आप इस विषयमें जराभी संदेह न करें रानीके मुखसे ये वचन सुन बौद्धसाधुओंको परम संतोष होगया। हर्षितचित्त हो वे शीघ्र ही महाराजके पास आये । और सारा समाचार महाराजको कह सुनाया। बौद्ध गुरुओंके मुखसे रानीका इसप्रकार विचार सुन महाराज भी अति प्रसन्न हुवे। उन्हें भी पूरा विश्वास होगया कि अब रानी जरूर बौद्ध वन जायगी। तथा रानी की भांति भांतिसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ____www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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