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(१८० ) इसचिंताका कारण न तो आप हैं । और न कोई दूसरा मनुष्य है। इससमय मुझै चिंता किसी दूसरे ही कारणसे हो रही हैं । तथा वह कारण मेरा जैनधर्मका छूटजाना है। कृपानाथ ! जबसे मैं इस राजमदिरमें आई हूं एक भी दिन मैंने इसमें निग्रंथ मुनिको नहीं देखा ! राजमंदिरमें उत्तम धर्मकी ओर किसी की दृष्टि नहीं। मिथ्याधर्मका अधिकतर प्रचार है। सब लोग बौद्धधर्मको ही अपना हितकारी धर्म मान रहे हैं । किं तु यह उनकी बड़ी भारी मूल है। क्योंकि यह धर्म नहीं कुधर्म है। जीवोंको कदापि इससे सुख नहीं मिल सकता । रानी चेलनाके ऐसे वचन सुन महाराज अति प्रसन्न हुवे । उन्होंने इसप्रकार गंभीरवचनामें रानीके प्रश्नका उत्तर दिया ?
प्रिये! तुम यह क्या ख्याल कर रही हो? मेरे राजमंदिरमें सद्धर्मका ही प्रचार है । दुनियामें यदि धर्म है तो यही है । यदि जोवाको सुख मिलसकता है तो इसी धमकी कृपासे मिल सकता है। देख : मेरे सञ्चदेव तो भगवान बुद्ध हैं । भगवान बुद्ध समरत ज्ञान विज्ञानोंके पारगामी है ! इनसे बढ़कर दुनियामें कोई देव उपास्य और पूज्य नहीं । जो पुरुष उत्तम पुरुष हैं । अपनी आत्माके हितके आकांक्षी हैं उन्हें भगवान बुद्धकी ही पूजा भक्ति एवं स्तुति करनी चाहिये क्योंकि हे प्रिये ! भगवान बुद्धकी ही कृपास जविाको सुख मिलते हैं। और इन्हीकी कृपासे स्वर्ग मोक्षकी प्राप्ति होती है । महाराजके मुखसे इसप्रकार बौद्धधर्मकी तारीफ सुन रानी चेलनाने उत्तर दिया।
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